बेटे को परीक्षा दिलाने साइकिल चलाकर 105 किमी दूर धार पहुंचा पिता,जेब खाली दिल अमीर

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(डॉ विजयवर्गीय)

धार-बच्चे को पढ़ाने का माता-पिता में कैसा जज़्बा होता है इसका बेहतरीन लेकिन आंखें भर देने वाला नज़ारा धार में दिखा। पेशे से मज़दूर एक बेबस पिता साइकिल पर 105 किमी का रास्ता तय कर बेटे को परीक्षा दिलाने पहुंचा।कोरोना के कारण बसें और सवारी गाड़ियां बंद हैं इसलिए पिता ने ये मुश्किल सफर साइकिल पर तय किय।

गाड़िया बन्द थी,हिम्मत नही हारी  सायकल से चल दिये

शोभाराम, धार जिला मुख्यालय से 105 किलोमीटर दूर बयडीपुरा गांव में रहते हैं।उनका बेटा आशीष दसवीं में पढ़ता है। इस साल परीक्षा में उसे सप्लीमेंट्री आयी थी।अब दसवीं बोर्ड की सप्लीमेंट्री परीक्षाएं हो रही हैं। आशीष को परीक्षा देने ज़िला मुख्यालय धार आना था लेकिन वो यहां तक पहुंचता कैसे, कोरोना के कारण बसें बंद है।कोई और सवारी गाड़ी भी नहीं चल रहीम समस्या विकट थी और वक्त नहीं था।आशीष को परीक्षा देने समय पर धार पहुंचना था। कहीं कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. जब कोई वाहन और किसी से मदद नहीं मिली तो पिता शोभाराम ने बेटे आशीष को अपनी साइकिल पर बैठाकर परीक्षा केंद्र तक लाने का फैसला किया।

सोने के लिए खुले आसमान के नीचे आराम

गरीब पिता शोभाराम अपने बेटे आशीष को साइकिल पर बैठाकर धार के लिये निकल पड़ा। दोनों बाप-बेटा दोपहर में गांव से रवाना हुए।रास्ते में रात हो गयी इसलिए मांडू में इन्होंने रात्रि विश्राम किया।अगले दिन समय पर परीक्षा केंद्र पहुंचने के लिए अलसुबह मांडू से धार के लिये रवाना हो गए।पिता की मेहनत सफल हुई। आशीष वक्त पर परीक्षा केंद्र पहुंच गया. उसने धार पहुंचकर परीक्षा दी।


जेब खाली दिल अमीर

अगले दिन फिर आशीष की परीक्षा थी लिहाजा दोनों धार में ही रुके रहे।गरीबी के कारण किसी होटल या सराय कर पाना इनके लिए नामुमकिन था। इसलिए ये धार के स्टेडियम में खुले आसमान के नीचे ही सो गए।अगले दिन फिर आशीष की परीक्षा थी लिहाजा दोनों धार में ही रुके रहे।गरीबी के कारण किसी होटल या सराय कर पाना इनके लिए नामुमकिन था।इसलिए ये धार के स्टेडियम में खुले आसमान के नीचे ही सो गए ।

बेटे ने पिता के लिए कहा

आशीष की लगातार तीन दिन परीक्षाएं हैं।इसलिए पिता-पुत्र दोनों घर से अपना राशन-पानी और सोने के लिए बिछौना लेकर आए हैं।पिता साइकिल चलाता रहा और बेटा अपनी कॉपी किताबों के साथ बोरिया बिस्तर पकड़े साइकिल पर पीछे बैठा रहा। आशीष का कहना है, कोरोना के इस दौर में जब कहीं से मदद नहीं मिल रही थी तब लगा कि मैं परीक्षा नहीं दे पाऊंगा। ऐसे कठिन हालात में पिता ने तय किया कि वो मेरा एक साल बर्बाद नहीं होने देंगे।बस इसी संकल्प के साथ हम चल पड़े और समय पर धार पहुंच गए।हालांकि शोभाराम और आशीष की कठिनाई उसकेबाद भी कम नहीं हुई।बारिश के मौसम में खुले आसमान के नीचे रहना और परीक्षा की तैयारी करना अपने आप में कितना कठिन रहा होगा इसका अनुमान लगाया जा सकता है।

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