★★ बॉलीवुड के महानतम सिंगर किशोर कुमार का जन्म आज के ही दिन हुआ था।भारतीय गीत-संगीत चाहने वालों के सबसे ज्यादा चहेते सिंगर के सिंगर बनने की कहानी बेहद दिलचस्प है।
★★ किशोर कुमार को 19 गानों के लिए फिल्मफेयर नॉमिनेशन मिला और आठ बार उन्होंने यह अवॉर्ड अपने नाम किया
खंडवा. — आज 4 अगस्त को बॉलीवुड के सुप्रसिद्ध और लोकप्रिय पार्श्व गायक और अभिनेता स्व. किशोर कुमार का जन्मदिन है। उस किशोर कुमार का जिसे दुनिया वालों ने कभी मनमौजी कहा, कभी अल्हड़ लेकिन किशोर कुमार खंडवे वाला ताउम्र किशोर ही रहा।
किशोर कुमार, बॉलीवुड का ऐसा मनमौजी इंसान जिन्होंने अपनी आवाज, अपनी जिंदादिली के बल पर लोगों के दिलों पर राज किया।न सिर्फ खुद अपनी एक्टिंग के बल पर लोगों को गुदगुदाया सितारों की पीढ़ी को अपनी आवाज से सजाया।आज उसी सितारे का 91 वां जन्मदिन है। 4 अगस्त 1929 को मध्य प्रदेश के छोटे से शहर खंडवा जिले में एक बंगाली परिवार में उनका जन्म हुआ जिसका नाम आभाष रखा गया। पिता कुंजलाल गांगुली खंडवा में पेशे से वकील थे।चार भाई बहनों में आभाष गांगुली सबसे छोटे थे।बड़े भाई अशोक कुमार का बॉलीवुड में एक स्थापित नाम था। आभाष खंडवा से भागकर अपने बड़े भाई अशोक कुमार के पास मुंबई चले गए।मुंबई में अशोक कुमार ने आभाष से फिल्मों में एक्टिंग करने को कहा। लेकिन आभाष का मन एक्टिंग में नही लगता था। अशोक कुमार की जिद के बाद उन्होंने फिल्मों में अभिनय करना शुरू कर दिया
जहां बालीवुड ने उन्हें किशोर कुमार का नाम दिया।
जब एक्टिंग के समय डायलॉग भूल जाते थे
किशोर कुमार ने 1946 में शिकारी फिल्म में एक्टिंग शुरू की। लेकिन शूटिंग के दौरान वो डॉयलाग भूल जाते थे।अशोक कुमार की डांट-फटकार के बाद किसी तरह उन्होंने फिल्म पूरी कर ली. किशोर कुमार का अब भी एक्टिंग में मन नहीं लगता था ।वो के.एल. सहगल की तरह गायक बनना चाहते थे। 1948 में खेमचन्द्र प्रकाश के संगीत निर्देशन में फिल्म जिद्दी के लिए उन्होंने पहली बार देवानंद के लिए गाना गाया। गीत के बोल थे “मरने की दुआएं क्यूँ मांगू, जीने की तमन्ना कौन करे”। इसके बाद किशोर कुमार ने फिर कभी पीछे मुड़कर नही देखा
देखरेख के अभाव में खण्डर हुआ बंगला
किशोर दा का बंगला खण्डर हो गया है । खंडवा के लोग इसे सहजने की मांग कर रहे है
लाला जलेबी के दीवाने
किशोर कुमार को अपनी जन्मभूमि खंडवा से बहुत लगाव था।देश-विदेशों में भी वे खंडवा का जिक्र करना नही भूलते थे। यही नही खंडवा में बचपन में जिस लाला जलेबी वाले के यहाँ वो दूध-जलेबी खाया करते थे उस दुकान को भी नहीं भूले।उनका प्रसिद्ध जुमला था दूध जलेबी खाएंगे-खंडवा में बस जाएंगे ।
अधूरा रह गया सपना
हालांकि किशोर कुमार का खंडवा में बसने का सपना पूरा नहीं हो पाया। लेकिन किशोर कुमार को जितना खंडवा से लगाव था उतना खंडवा वालों ने भी उन्हें अपने सर आंखों पर बैठाया।उनके यहां स्थित पैतृक मकान को लोगों ने मंदिर से कम नहीं समझा। घर अब पूरी तरह खंडहर हो गया है। खंडवा के लोगों को इसकी बड़ी टीस है।लोग खंडहर होते इस अवशेष को संग्रहालय में तब्दील करने की सरकार से मांग कर रहे हैं ताकि किशोर दा की की स्मृतियों को यहां हमेशा के लिए सहेज कर रखा जा सके।